गुरुवार, 19 नवंबर 2009

बेबसी

बहुत सोचने वाले मन में

आज नही हे कोई विचार

बार बार दोहरा लेते हे

याद रहे जो अक्षर चार।

केसे हो तुम

कब आओगे

कब खाएय्गे खाना आज

इस के आगे नही बढेगी

बोल चाल की यह आवाज।

डॉ किरण बाला

ख्याल

वक्त मिलाता हे
जुदा करता हे
लेकिन याद रखना
यह सब खुदा करता हे।

बुधवार, 18 नवंबर 2009

रिक्त स्थान

जीवन के रिक्त स्थानों में

हम खो जाते हे।

कुछ खुशी के लम्हों के लिए

यु ही लुट जाते हे।

कही स्याही की रौनक

कही ल्फ्सो की हरकत

धर्कते दिलो को जोड़ कर

मुकमल बना जाते हे।

डॉ किरण बाला

सोमवार, 9 नवंबर 2009

यह ही जीवन हे

चलते चलते जीवन में
कुछ ऐसे पल भी आते
भूल चुके सब किसे मसले
आज याद आ जाते।

बेठे बेठे सोच सोच कर
मन फिर कुछ भर आता
कएय्सा किसने किया तभी था
याद आज आ जाता।

समझा लो तुम मन को कितना
फिर भी मन चंचल हे
उस की सोच बदल न सकते
यह ही तो जीवन हे।

डॉ किरण बाला

बात बीती हो गयी

चल रहे हे रास्ते
किस तरफ़ पता नही
जा रहे हम भीड़ में
कोई हम सफर नही।

खूब सूरत वादइयो में
गूंजती आवाज फिर
रोशनी की इक झलक
देखते हे हम इधर।

मंद सी मुस्कान आज
छू कर ओठ खो गयी
छत्त पटाते हम यहाँ पर
बात बीती हो गयी।

डॉ किरण बाला

मंजिल

रात के अंधेरे में
मद्धम रौशनी की लोः
धर्कते दिल को क्या सिला देती हे।

कुछ अनकहे सवाल उठते हे
मासूम सी हरकतों के बीच
उम्मीद की किरण
वादों के काफिले लिए
दरवाजे तक पहुँच जाती हे
कर देती हे मजबूर हमें
नेयेती के संग चले जाने को।

दिल की गहराएयो को छू कर
भीनी सी खुशबू सुकून देती हे।
हम भीगी पलकों के सहारे
कुछ -कुछ सोचते हुए
चुपचाप मंजिल की ओर चल देते हे।

डॉ किरण बाला