मंगलवार, 25 अगस्त 2009

बुदापन इंसान का आखिरी पड़ाव 16

'बूढापन इंसान का आखिरी पड़ाव '

शुरू कभी कही से हो ,
आखिरी पड़ाव तो आना हे ।

यह जीवन हमने पाया जो ,
उस को तो इक दिन जाना हे ।

बचपन से जवानी के दिन तो
जल्दी -जल्दी बीत चले
यु आँख खुली तो क्या देखा
यह जीवन तो बेगाना हे ।

आखों में धुंधला पन छाया
काया की चमक भी दूर गयी।

दातों ने बहुत न संग दिया,
रातो की नींद भी गोल हुई ।

कभी यहाँ दर्द, कभी वहां दर्द
कभी सर दर्द का बहाना हे।
अब तो जीवन यु काट रहे,
कुछ दिन में यहाँ से जाना हे।

डॉ किरण बाला

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