पगडंडियो में घूमते
हम रास्ते थे दूंदते
कितना सफर मिलना अभी
न सोचते
न बोलते।
चलते रहे-चलते रहे
बस यह हमारा अशर हे
रुक गया वो खो गया
यह बात बिल्कुल सच हे।
न सोचना की यह किया
बस कर दिया-बस कर दिया।
इस सोच में थे खो गए
जो बीतता वो खो दिया।
डॉ किरण बाला
I have written poems from published hindi poetry book titled 'dil ke batein'. I am a pediatrician and a published writer and poet.Presenting my views to others is my hobby.
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