सोमवार, 9 नवंबर 2009

बात बीती हो गयी

चल रहे हे रास्ते
किस तरफ़ पता नही
जा रहे हम भीड़ में
कोई हम सफर नही।

खूब सूरत वादइयो में
गूंजती आवाज फिर
रोशनी की इक झलक
देखते हे हम इधर।

मंद सी मुस्कान आज
छू कर ओठ खो गयी
छत्त पटाते हम यहाँ पर
बात बीती हो गयी।

डॉ किरण बाला

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