सोमवार, 31 अगस्त 2009

कल क्या हुआ

'कल क्या हुआ '

कल क्या हुआ
उस का हिसाब नही
आने वाले पलो का
जवाब नही।

जो आज हो रहा हे
उसे समझ न सके
कुछ पा लेने का इंतजार नही।

बुलंद सपनो के
बीच गुजर करे
कैसे करे बसर
कुछ मुख्त्यार नही।


डॉ किरण बाला

रविवार, 30 अगस्त 2009

मिलते नही किनारे

'मिलते नही किनारे'

आग बनी सावन की बरखा
फूल बने अंगारे
गलिया सूनी कुञ्ज उदास
चुप -चुप हे दीवारे ।

नागिन बन गयी
रात सुहानी
विश से बुझ गए तारे
दर्द भरी इस दुनिया में
मिलते नही किनारे ।

डॉ किरण बाला

OF THE OLD BLISS!

"OF THE OLD BLISS!"

Man and wife starts life,

children come and bring delight.

Years pass, keeping busy

how time flies, not so easy!

There are UPS

and many DOWNs!

Bring together people around!

Social gatherings

night out dinners

Celebrate festivals throughout the year!

Suddenly oneday last child--leaves home

Man looks at woman

And woman CRIES alone!

There is no hustle-bustle

in the house

only some letters are seldom found!

Now they remember how children lived

Their belongings remind them of the OLD BLISS!

Dr Kiran Bala

शनिवार, 29 अगस्त 2009

बुडापा आ गया 18

बुडापा आ गया


बुडापा चीज़ हे ऐसी
जिसे कोई भी न चाहे
मगर वो आ ही जाता हे।


वो मेहमान हे यहाँ एइसा
बुलाय बिन जो आ जाता
हमें बेठे बिठाये वेह
बहुत आश्रित बना जाता।


जिस तन पर गर्व था हमको
सजाया जिस को करते थे
बहुत सुंदर सलोने वस्त्रे
और्राया उसको करते थे
मगर शिकवा गिला कैसा
यहाँ तो सब खिलाड़ी हे
जो जीता कल तक करते थे
उन्हों ने बाजी हारी हे।

कही बेटा हो या बेटी
या फिर हो बहिन या भाई
सभी ने फेर ली आंखे
अब तो देते रहो दुहाई।

जीवन का एइसा अंत
आखिर सब पर आना हे
यह दुनिया हे नही अपनी
यहाँ से कल तो जाना हे.

डॉ किरण बाला

नए घर का निर्माण 45

naye ghar ka nirmaan

ghar jab apna banne lagta
sab kuch lagta pyara sa
uchee uchee ashyo ka
lagta ek kinara sa

soch rahe he hum bethe kee
kaise kam karyege
saari mansha poori karke
sunder mahal baneyge

dawat ka phir nyota dekar
havan kund sjayege
agnee dev kee pooja hogi
ayge bahut jajman

kathenayee badtee he gayee
jaise-jaise beete din
yeh tuta or wo tuta
lagi kahi deemak aur ghuun

kabhee palumber
kabhee mistree
kabhee mehree kee baree he
paise unko dete jayo
yeh to ek beemari he
mehmanoo ka tanta lamba
kahan kahan se ate he
bina baat ke
jeevan ko we
ast wyst kar jate he

dr kiran bala

कवि की कविता साथी प्यारा 46

kavi kee kavita saathee pyaara

sathee na koy jab
kalam banee sahara
khud chal padi lachak se
dekhaati rahi najaara.

wo to bani thee darpan
dhundhale se man kee chhya
dil kee dabi chubhaan ko
syhi ka rang aya.

sunder sa geet janma
man me umang lekar
wo de gaya khushi tab
dukh kee ghata chhati ab

hum the khade akele
itne bade jahaan me
wo ban gayee sahaara
pyara saa meet ban kar

dr kiran bala

कविता का जनम 47

'kavita ka janam'

Kavi ka man jab rota he
to jakhmo se
lahoo kee jageh
panktiyo kee lehar beh jaati he.

ek ke baad ek kora kagaj
syehi kee audnee aude
chamakne lagta he

man ke merusthal se nikalti he
ek sureelee dastan
jo koy behaal, khushhaal
jeevan kee parto me keh deti he
ankahi kahaani
tab janam leti he
ek adhkhili kali jaise sunder kavita
jo kabhee na kabhee to khil he jayegi

Dr Kiran bala

आज के नेता 49

aj ke neta

sab ke jubaan par ek baat he.
aj har neta be lagaam he

dalbadal kee daldal me sab phanse huy
girgit ko bhee, aj maat de rahe

karte he har din, gadbad ghutale
rishwat ko lekar bante he lale.

khush ho kar kehte he
hum nirdosh he
phir dekho, mauj masti me madhosh he.

har koy laga he, paise kamane.
pata nahi kis din kurse gavale
na vaibhav na ijat na masti rahegi
tab to unko gidgidana parega
janta kee adalat me aanaa padega.

dr kiran bala

अंतर- आत्मा की आवाज मनुष्य के लिए 50

anter -atma kee awaj manushy ke liye


shabdo ke sangram me
haar huy ya jeet
kuch bhee hath na ayega
santapit man meet.

har dum ek hee chah he
humko mile khitab
achha bura jo bhee kiya
uska nahi hisab.

man kee ichha mar ke
sehaj hot sab kam
chalta phirta jo mile
usy milaye ram

pashuta ko ab chhor kar
man me dheerj dhaar.
jaisa taisa jo mile
us se kare gujaar
patang kati ko dekh lo
girte jakar door

Dori ka pata nahi
kyo koi kare gurrur.
aj mile jo soch le
kal milega kaal
sang jayega kuch nahi
vyarth rahe behaal.

dr Kiran Bala

श्मशान से मृत्यु के बाद 54

'श्मशान से मृत्यु के बाद'

इस बाग़ में हे लग रहा
मुरझा गए हे फूल सब।
खुशबू जो महक थी कभी,
उकता गए हे आज सब।

पेशान सा हे सिलसिला
चारो तरफ़ ही धुंद हे
na rasta milta kahee
bejaan se he har gali.

mauseo ke he samander,
kuch yaha terak the.
parchhea he reh gayee
bejaan wo bekhaab the.

wo yaad he jo thaa kabhee kal
kal to phir bhee ayega
beetne wala harek pal
dard he de jayega.
dr kiran bala

कतार में खड़े 55

'कतार में खड़े '

चल रहे हे
सब कतारों में खड़े
कौन पीछे
कौन आगे न ख़बर।

किस तरफ़ हे जा रही यह भीड़ अब
दिल की धड़कन तेज थी
अब कम हुई।

रुक गया हे वक्त
लगता हे हमें
चलते चलते रौशनी मद्धम हुई।

गिर रहे हे
काफिले
मंजर पे अब
आस में बेठी
उमीदे
कम हुई ।

डॉ किरण बाला

तो क्या समझे 56

'तो क्या समझे'

बीच बेठे भीर में हे रो रहे
बात कर न सके
तो क्या समझे।

असीम दुनिया के दरिया में खो रहे
उभर न सके
तो क्या समझे।

जब कभी दर्दे दिल की बात
अपनों से न कह सके
तो क्या समझे

डॉ किरण बाला

तरंगे 57

'तरंगे '

मन में तरंगो का महल बनाना।
तरंगो का यु हे बिखर बिखर जाना।
रह जो गया वो, man to nahi he
yahi sochne ka dhang to nahi he

dil chaheta he dil ko nikale
ise apne sanmukh fisa se betha le
kar le kuch bate, beetee puranee
kaise thee beetee yeh jindgani.

dr kiran bala

अपने आप को समझाते हुय 62

'अपने आप को समझाते हुय'

क्यो मुरझाये पुष्प की तरेह,
समय बिताते हो।

जो भी अच्छा नही हुआ
क्यो दिल को लगाते हो।

सोच समझ तो बहुत मिली हे
क्यो यु ही ghabrate हो।

jo bhee achha pas tumare
use bhulate ho.

chhoti chhoti andhi he
jo kal ud jayegi.

charo taraf ujala hoga,
khushbo mehkayegi.
dr kiran bala

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

कल्पना की उड़ान 64

'कल्पना की उड़ान'



धरा को चुमते
नभ को निहारते

मन ही मन सोचते
हम यु ही कुछ खोजते।


आज हवाए कुछ और हे
जीवन की फिजाये कुछ और हे

रफ्ता -रफ्ता करते
कुछ कभी समझते

chnd lamho kee jhalak
samander me motio kee chamak

pratibimb chandrma ka
prakash sitaro ka

shikhir kee doori ko
pawan kee teji se

pal me ghta ke melo se
kuch hi kshan me pate

yeh sunder kalpana he
man ka sunehla sapna he

kab kabhee milta he
bas yahi dekhna he.

dr kiran bala

जीवन की सच्चाई 65

'जीवन की सच्चाई'

वक्त वक्त की बात हे
इक दिन सब का होय
यह तो चक्र अजीब हे
चलता एक ही और
चाहे कुछ भी सोच लो
बदले कभी न पोर
जब तक मीठा स्वाद हे
कड़वाहट हे दूर
सपनो में उलझे रहे
भूले पीड शरीर
हम लाये कुछ साथ न
न जाना कुछ साथ
संचित जो भी हे किया
उसका न संताप
करनी भरनी हे यहाँ
ध्यान करो जो काम
अच्छा बुरा जो जांचना
लेके प्रभु का नाम

डॉ किरण बाला

आत्म ग्लानी 66

'आत्म ग्लानी '



किसी समय हम, कुंठित मन से ।

पीड़ा ,किसी को, दे देते ।

लेकिन फिर जब, क्रोध शांत हुआ । । ।

तो pachhta कर रो देदेते।



आत्म ग्लानी बहुत बुरी हे।

मुड़कर देख रहे हे हम

याद आ रही, un baatho kee,

जो बीती थी पिछले पल।

डॉ किरण बाला

बसंती फूल 70

'बसंती फूल'

निर्जीव वस्तुओ के बीच,
लगे हे, कुछ फूलो के पोधे .

वो बड़ते हे धीरे धीरे।
एक दिन उनकी कोमल तह्नेयो में
लाद जाते हे बसंती फूल .
तब सब और महक
फूलो की
फेलती हे इस तरेह
जैसे जीवन में आती हे
खुशियो की बहार ।

डॉ किरण बाला

आश्रितों से व्यवहार 74

'आश्रितों से व्यवहार '

इश के बने इंसान को,
तुम प्यार करो बस प्यार करो ।

भूल हो गयी कोई उनसे
माफ़ करो और जाने दो ।

बहुत बड़ा दिल अपना रखो,
छोटी बातों में न उलझो।
यो न व्यर्थ गवाओ समय को,
माफ़ करो और जाने दो।

दूर सफर के हो तुम रही,
बहुत दूर तक jaana हे।
अर्जित कर लो साज -समग्री,
जीवन में कुछ पाना हे।

डॉ किरण बाला

पते की बात 75

'पते की बात '

धन अर्जित एइसा करो
कभी घटे न खोय।
kitnee भी आंधी उडे,
बल न बांका होय।

अच्छा करो व्यापार तुम
मन मैला न होय।
सोयो निद्रा चेन की,
कछु चिंता न होय ।

डॉ किरण बाला

भवसागर में 77

'भवसागर में'

भवसागर में
बिना नाव के,
कूद पड़े हम साहस से ।

क्या होगा,
कल पता नही हे,
सोच रहे अब सर धुन के ।

वक्त साथ रहता न सबके।
देखो कल ,
क्या होता हे ।
मिले सफलता का चेहरा,
या mausi का लेखा हे ।
डॉ किरण बाला

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

बातें करो 35

'बातें करो'

दिल को दिल से जुडाने की
बातें करो।
फांसले कम कराने की
बातें करो।

आज इतना बुरा हाल, चारो तरफ़,
गम को कुछ तो मिटाने की
बातें करो।

रिश्ते नात्तो में, गरिमा हे बिल्कुल नही,
खून भी, shaayad, bin rang ka hone laga .

aaj kisko mile pyar se hum gale
door kaise kare, man ka yeh phansala .

dr kiran bala

सितारे 34

'सितारे'

अम्बर में चम- चम करते तारे,
मुझे तुमसा बनना हे।

तुमारी
ऊंचाई, chandni, chamkahut, apnakar,
tumare pad chinho par chalna he.

apne takat ka, karishma dikhao abhee,
hame bhee apna jaisa banakar
duniya kee nazro me chamkao abhee.
dr kiran bala

बदले पलों की इंतज़ार 29

'बदले पलों की इंतज़ार'

इंतज़ार उस पल का करते,
जब सब बदला -बदला हो।
कोई सुहाने सपनो का जब,
मिलने का अंदेशा हो।

अविचल मन के सागर में यू
स्वर के कंकर ध्वनि करे।
अब तक जो समतल रहता था,
उस को भी हम पर करे।

क्या सोचा हे तुमने आज,
निकल सकएगे कब तक पार।
सोची समझी इस दुनिया में,
मिलते हे हम सब को यार।

बदली -बदली raaho पर ,
hum kuch to samaj nahi paye.
duniya ke har insaan ko,
khush karne ko na aye.
dr kiran bala

बुधवार, 26 अगस्त 2009

निर्झर झरना और हम 28

'निर्झर झरना और हम '

निर्झर झरने की तरेह ,हम भी,
आवाज़ की दुनिया में रहते।

शोरोगुल रहता आस- पास,
दुनिया से बेखबर हम रहते।

जल का जो उजलापन देखा,
तन ,मन , धन ,उसका कर ही दिया।
आते जाते पाथेको को
सुन्दरता का उपहार दिया
आभास हुआ तब एइसा कुछ
ऊपर जाने वाला गिरता हे
नीचे तो सब को आना हे
यह आवागमन पुराना हे।

पानी की तेजी देख- देख
मन करता हे हम भी भागे
छोडे अब धीरे चलना हम
आगे जाने की सोचे।
डॉ किरण बाला

गुजरात में हिंदू मुस्लिम दंगो के बाद 17

'गुजरात में हिंदू मुस्लिम दंगो के बाद'

शांत नगर में थी खुशहाली,
चारो तरफ़ उजाला था।

मिल -जुल कर हर कोम वहाँ थी,
प्यार मेल का संगम था।
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई
आपस में थे भाई -भाई
लेकिन इक चिंगारी ने जब
भीषण आग लगाई।
पता चला न तभी किसी को,
किसने चाल चलायी।

वेर भावः की चली लडाई,
ghrena

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

बुदापन इंसान का आखिरी पड़ाव 16

'बूढापन इंसान का आखिरी पड़ाव '

शुरू कभी कही से हो ,
आखिरी पड़ाव तो आना हे ।

यह जीवन हमने पाया जो ,
उस को तो इक दिन जाना हे ।

बचपन से जवानी के दिन तो
जल्दी -जल्दी बीत चले
यु आँख खुली तो क्या देखा
यह जीवन तो बेगाना हे ।

आखों में धुंधला पन छाया
काया की चमक भी दूर गयी।

दातों ने बहुत न संग दिया,
रातो की नींद भी गोल हुई ।

कभी यहाँ दर्द, कभी वहां दर्द
कभी सर दर्द का बहाना हे।
अब तो जीवन यु काट रहे,
कुछ दिन में यहाँ से जाना हे।

डॉ किरण बाला

दुर्घटना 33

'दुर्घटना '

हर दिन बड़ते हे वाहन
इस देश की सडको पर।
दुर्घटना भी होती खूब ,
देश की सडको पर .

कोई भी न पालन करता
ट्रैफिक के नियमो को आज
जहाँ मिला मौका जिसको
आगे जाने को बेताब।

कोई डरता नही यहाँ पर ,
वर्दी पहने लोगो से
खुले आम रिश्वत चलती हे
या फिर गुंडा गर्दी आज।


क्यो न हम कानून बना कर
लगातार, सब को समझा कर,
चालक की बदले कुछ आदत।

शायद यह छोटी सी बात
घटा सकेगी दुर्घटना से
होने वाली काली रात ।

डॉ किरण बाला

कुछ न मिलेगा 31

'कुछ न मिलेगा '

बिना स्वार्थ के,
कोई न अपना,
आज जगत में।

कितना भी चाहो,
तुम सोचो,
सोचते जायो,
कुछ न मिलेगा।

मतलब की इस दुनिया में,
तुम व्यर्थ के माली
सींचते जायो जग की बगीया,
कुछ न मिलेगा।

महक रहे फूलो की शोभा,
लगती प्यारी ,
देखते जायो,
कुछ न मिलेगा।

डॉ किरण बाला

रविवार, 23 अगस्त 2009

स्वपन की बात 30

'स्वपन की बात'
दूर तार की घंटी बजती,
दिल कुछ डरने लगता ।
सोच-सोच कर स्वपन raat का,
धक्-धक् करने लगता।

ho na ho, ab mila

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

आज के बच्चे 52

"आज के बच्चे"

बच्चो को ममता का आँचल,
हर दम अच्छा लगता।

कब कुछ करना या न करना,
हमने माँ से ही सीखा था।

बदल गया हे आज समय,
जब माँ के बदले नेनी हे।

पैसो की तो कमी नही हे,
par dil ke veerani he.

tan par kapde bahut rashmi
ghar me pade khilone dher.

lekin man to he udas,
thodi see mamta kee pyas.
bhara ansuyo ka agar,
kaun dilay ma ka pyar.
Dr kiran bala

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

मन करता हे 53

"मन करता हे"

मन करता हे
उड़ते-उड़ते
स्वर्ग पहुच जाऊ।

रोज-रोज के झंझट तन्तो
से छुटकारा पायु।


हर दिन एक तरह की बातें
करते-करते
उकता मन।


नया नवेला कुछ पाने को
उठती एक उमंग।


इतना पता नही हे हमको
कल क्या होने वाला हे।

फिर भी दिल का मीत बताये
ताला खुलने वाला हे।

डॉ किरण बाला

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

चुप रहना जरा मुश्किल हे

बोलते लोगो के बीच
"चुप रहना जरा मुश्किल हे "

चेह -चहाते मौहोले में
कुछ ना कहना जरा मुश्किल हे

जब सब कहते हे
अपनी-अपनी कहानी

तो दिल करता हे कहने को
बीती जिंदगानी

क्यो ना बोलने की दोड़ में
कुछ भी आगे बड़े

दिल में कुछ ना रख कर
जो मन में आए सबसे कहे।

डॉ किरण बाला

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

याद जब आई

याद जब आई

जीवन की गहरैओ में
खो गया वो प्यार
जो कभी हमने किया था .

व्यर्थ की उलझनों में
बस गया ऊलास
जो कही खो गया था

उमंग के वो क्षण
झंजनाहत के सहारे
उलाहना दे रहे हे हमें

याद करते हे वो बात्तें
जो भूल चुकी हे

होठो की नरमी
सांसो की गर्मी
जब दुरिया लांग कर एक हो जाती हे
तो छंट जाती हे मायूसी की परझाई

चंद फिक्रो को नजम बना कर
लाँघ सकते हे दूरिया
सब कुछ भूला कर

तभी सरसरा कुछ रंग लायेगा
बीता हुआ कल फिर लौट आयेगा

किरण बाला

बेमिसाल

बेमिसाल

प्यार जो पा लेता है
उसे हर खुशी नही मिलती
यू तो ज़माने में हज़ार दुश्मन इस के
फिर भी जहा प्यार हुआ
उस की मिसाल मुश्किल है

किरण बाला







प्यार

प्यार

प्यार जब मिलता हे तो
देने को जी चाहता हे

प्यार जब होता हे
तो पाने को जी चाहता हे

प्यार वो वक्त की नजाकत हे
जो हर किसी को नही मिलती

किरण बाला

सोमवार, 3 अगस्त 2009

भाव

भाव

मुस्कुराते चहेरे के पीछे
क्या छिपा हे
तेरी बातों में क्या
गिला हे
जब खोलोगे जुबान
तोही पता लगेगा
यू तो सब ठीक ही लगता हे

किरण बाला