गुरुवार, 30 जुलाई 2009

नकाब

नकाब पहने
बहुत दिन रहे
आज असली रूप सामने आ ही गया
आखों में नफरत
बातो में गफलत
सर में गुबार
ऊपर से प्यार
ममता की डोरी
कट हे गयी
किरण बाला

सोमवार, 27 जुलाई 2009

समय रुपी अष्व पर सवार 59

"समय रुपी अष्व पर सवार"

हम सवार अष्व पर
हवा के वेग सा चले।

कहाँ चला किधर मुड़ा
यह बात कुछ भी ना पता।

अंधेरे से हे रास्ते
तेज -तेज मुड रहे।

मंजिलो को ढूंढते
किधर मिले , कहा मिले।

डॉ किरण बाला

रविवार, 26 जुलाई 2009

बेबसी 58

"बेबसी"

बेबस क्यो इतने
हम हे बेचारे।

यू तो हे कहते
सब हे हमारे।

जब वक्त पड़ता
कोई ना अपना।

सारे जहाँ में
खड़े बेसहारे।

मुश्किल बहुत हे
मन को सुझाना
कौन हे अपना
या वोह बेगाना।

इतना समझकर भी
उलझा सा मन हे
एय्से लगे जैसे
जीवन बंधन हे।

डॉ किरण बाला

जीवन का सत्य 68

"जीवन का सत्य"

मतलब हे ख़ुद से,
ख़ुद का,
ख़ुद से ही रहेगा।

जिंदगानी बीत जाने पर,
कुछ ना बचेगा।

यह चंद दिन का आशियाना हे
यहाँ आकर सभी को जाना हे।

मिटने को यहाँ कुछ नही,
यहाँ तो ख़ुद ही मिट जाना हे।

बुलबुले ऐ मेरे मन,
संभल जा।

जलती चिंगारियों से निकल जा।

बीत जाने पर कुछ ना बचेगा,
यह सब मिथ्या सी झलक हे
सत्य से दूर रहने की महक हे।

उसी को पाने की , मन में किरण हे
मिल जाए वह, यही मेरा मन हे।

डॉ किरण बाला

बदली राहे 51

"बदली राहे"

एक राह पर चलते -चलते,
मोड़ सामने आया।

हमने कुछ घबरा कर,
पग पीछे सरकाया।

पता नही थी
यह लाचारी
या मजबूरी उस दिन
सोच -सोच कर , इसी बात को
मन अब कुछ मुरझाया।

डॉ किरण बाला

शनिवार, 25 जुलाई 2009

संघर्ष 48

"संघर्ष"

पेद्य्शे वक्त से इंसान
ऐसे जूझता रहता
कभी यहाँ , कभी वहाँ , खुशी को ढूँढता रहता

जब मिलता नही मुकाम
तो होता निराश।

छोड़ देता, कुछ करने की आस
भूल जाता कुछ क्षणों के लिए
की उसको आगे जाना हे
सब कुछ भूल कर , जीवन में कुछ पाना हे

बड़ी पेचीदा हे दुनिया
जिसमे हमको हे रहना
यहाँ आसान ना कुछ भी
हमें सब कुछ हे सहना

गमो को अमृतसम जानना होगा
आए जो सामने
उसे पहचानना होगा।

डॉ किरण बाला

दिल चाहता हे 44

"दिल चाहता हे

घरोंदा बनाने को
दिल चाहता हे।

अभी घर को जाने को
दिल चाहता हे।

बहुत दिन किया काम
लोगो का हमने
अपना कहाने को दिल चाहता हे।

डॉ किरण बाला

एहसास 43

"एहसास"

दुश्मन करे दुश्मनी
तो क्या हुआ।

टूट जाता हे दिल
जब अपनों ने दगा दिया।

वक्त तो किसी का मोहताज़ नही
बीतेगा हर पल जो तुझको मिला।

डॉ किरण बाला

गुजरा वक्त 42

"गुजरा वक्त"

वक्त तो यूं ही चलता रहेगा,
कल जो था आया,
वो आगे बडेगा।

कुछ रास्ते कट जब गए,
आँख खुली कुछ ना बचा।

खाली था हाथ,
कोई ना साथ,
मन था उदास,
प्यार की प्यास

बस अब बचा था
जीवन किनारा।

कोई ना पास
अपना सहारा।

ये तो कहानी
चलती रहेगी।

कुछ आ रहे हे
कुछ जा रहे हे
यह जिंदगानी चलती रहेगी।

डॉ किरण बाला

में क्या नही 40

"में क्या नही"

जब पूछा किसी ने
किसी से
तुम क्या हो ?

तो जवाब मिला -में कुछ भी नही

फिर आवाज़ आयी
क्या तुम औंस की बूँद भी नही
जो कर देती हे उजाला।

क्या तुम फूल की कली भी नही
जो खिलने का करती इंतजार।

क्या तुम हवा का झोंका भी नही
जो सुगन्धित जोश उड़ा रहा हे।

क्या तुम नदी का बहाव भी नही
जो पा जाता हे किनारा।

डॉ किरण बाला

बीते कल की सुंदर यादें 38

"बीते कल की सुंदर यादें"

कल की यादें,
इक परछाई,
साथ -साथ चलती हे।

जाए कितना दूर कही भी
पास -पास रहती हे।

समझ सके ना,
कल जो बीता,
सुंदर सपना वोह था।

फिर से मिल जाए वोह अपना
यह क्यो फिर सोचा था।

बीते पल की झलक मिली जब
हम तब भटक गए थे।

भूल गए थे बीती बातें
सपनो में खोये थे।

डॉ किरण बाला

ख़त का इंतज़ार 36

"ख़त का इंतज़ार"

जिस दिन ना कोई ख़त,
हमारे नाम आया।

दिल उदास हुआ,
कुछ निराश हुआ,
आस टूटी,
ख्वाबो का सिलसिला,
बे हिसाब आया।

सोचने लगे,
बहुत लोगो की बातें,
आज एक -एक करके
सब का ख्याल आया।

यूँ तो कहने को,
बहुत दोस्त नही,
लेकिन मन पसंदों पर भी
आज प्यार आया।

सुबह से टिकटिकी लगाकर
देख रहे,
दरवाजे की और,
शायद किसी ख़त का जवाब आया।

डॉ किरण बाला

भूल सके 27

"भूल सके"

ऐसा कुछ हे,
जो हम चाहे,
याद -याद कर,
भूल सके।

कुछ भी पा ले,
या समझा ले,
सोच -सोच कर भूल सके।

बहुत दूर तक निकल गए हम,
फिर भी यादें ताज़ी हे,
हर दिन सोचे,
फिर कुछ समझे,
हाय क्यो ना भूल सकें।

मित्र हमारे कई बने थे,
कई पार भी थे निकले,
फिर भी रह -रह कर हम सोचे,
क्यो ना सब कुछ भूल सके।

डॉ किरण बाला

नवविवाहित पति, पत्नी को क्या कहता हे 22

"नव विवाहाहित पति, पत्नी को क्या कहता हे"

बहुत सोच समझ कर,
मेने तुमको हे अपनाया।

अपनी , प्रेम भरी नादिया में,
हे तुमको सहलाया।

जो भी कुछ हे मेरा,
अर्पण किया तुम्ही को।

सब जग को में भूल गया,
और नित -चित किया मन को।

जैसा भी हूँ,
रहूँ तुम्हारा,
इच्छा ये करता हूँ।

प्यार भरे कुछ पल पाने को
दिल से कुछ कहता हूँ।

इश्वर के आगे,
तुम ही हो,
पूजा करू तुम्हारी।

बदले में जो कुछ मिल जाए
समझू वारी नयारी।

डॉ किरण बाला

बारी आयी 21

"बारी आयी"

सुनते-सुनते,
सुनाने की बारी आयी।

सुबह ढल गयी,
अब शाम आयी.

हम कभी भी,
यू ना थे झुकते,
अब झुकने-झुकाने की बारी आयी।

अब तो मुरझा गया हे यह बदन,
मरहम -पट्टी,
लगाने की बारी आयी।

चंद लम्हों की खुशी,
बाकी बची,
अब तो ऊपर जाने की बारी आयी।

डॉ किरण बाला

कवि की कल्पना -भूकंप के बाद 14

"कवि की कल्पना –भूकंप के बाद"

हमने जब मुस्कुराहतो को ढलते देखा,
खिले हुए बागीचो को उजड़ते देखा,
तो सोचा —ये कल,
शायद फिर आयेगा।

उजड़ा हुआ चमन,
फिर से खिल जाएगा।

फिर से होगा,
इक सुंदर प्रभात्त,
तब मिल सकेगे,
कल और आज।

लेकिन,
बेरहमी से उजड़ी बस्ती,
क्या फिर से बस जायेगी।

लहू -लुहान धरती,
क्या फिर उभर पायेगी

जो अपने थे कभी,
क्या वो मिलेगे हमें।

टूटे हुए दिल,
क्या फिर मुस्कुरायेगे।

मगर बीता कल,
तो बस कल्पना में ही लौटता हे,
बुझा दीपक,
सपनो में ही जलता हे।

कही हो कवि की कल्पना,
और लेखनी का कमाल,
तो फिर देखेंगे,
इस जग में,
तूफानी 'इन्कलाब'।

जब बीता कल,
फिर से लौट आयेगा,
उजड़ा हुआ संसार
फिर से बस जाएगा।

डॉ किरण बाला

शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

कुछ होने वाला हे 12

"कुछ होने वाला हेः"

शायद कुछ होने वाला हे,
मन की तरंगे रुक सी गयी,
थोड़ा सा मन उदास हुआ
कुछ आने का आभास हुआ
फूलो की महक , जाती सी गयी
काँटों की चुभन, का रास हुआ।

संध्या की बेला , आने को
रोशनी खड़ी, बस जाने को
घन-घोर घटा, मन में छाई
आशा की किरण, ना फिर आई।

कुछ हाथ नही, कोई साथ नही
फिर भी यह, व्यथा हमारी हे
चाहे कुछ भी ना किया हमने
यादों की कहानी सारी हे।

डॉ किरण बाला

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

आख़िरी क्षण 7

"आख़िरी क्षण"

व्यर्थ ना कर आँसुओ में,
वक्त की अनमोल घडिया।

बीत जानी हे क्षणों में,
साथ खिलती हे जो कलियाँ।

हर तरफ़ की बेरुखी,
एहसान एय्सा कर गयी,
मुख्त्लीफ़ हम को बना कर,
प्रेरणा से भर गयी।

आग में जल कर ही कोयला,
रौशनी फेलायेगा।

हर तरफ़ लपटों में धुल कर,
ख़ाक ही बन जाएगा।

यह हमारा,
ये तुम्हारा,
कोई भी अपना नही।

जो हे पाया,
नेक बन कर,
बस वोही संग जाएगा।

मृत्यु का ना समय कोई,
कब बुलावा आ गया।

ईश को तू याद कर ले,
ना तो फिर पछतायेगा।

डॉ किरण बाला

खुशी 6

"खुशी"

खुशी मन में हे,
मन के बाहर नही।

यहाँ देखो,
वहाँ देखो,
यहाँ खोजो,
वहाँ ढूँढो,
वः तो हे,
जहाँ चाह की दीवार नही।

इच्छा और खुशी दो बातें हे,
जिनका ना कभी भी मेल हुआ,
इक पा लो तो मन भरता न,
फिर पाने का झामैल हुआ।

इक मंजिल पार करो तब तक,
दूसरी तैयार खड़ी ही हे।

उसको भी, पाने का तुमने,
जब निश्चये ही, हर रोज किया,
तो फिर क्या हुआ,
कुछ भी ना हुआ,
आशाओं का तांता हे बंधा।

यह पाने पर,
वो पा जाना,
यह सोचना,
और घबरा जाना,
इतने से काम नही चलता,
इस जीवन में यह ना रास्ता।

यह जीवन एक तराना हे,
यहाँ फिर से आना जाना हे।

डॉ किरण बाला

आशियाना 5

"आशियाना"

कभी कितने लाचार,
हम ख़ुद को पाते।

सब समझते सोचते,
फिर भी खो जाते।

बहुत रंजोगम में खड़े हुए,
अब हेःगिरते, फिर संभल जाते।

यह तोः आशियाना हेः , ऊँचा नीचा,
कभी ना कही , पग डगमगाते।

सहज -सहज कर , चलते हेः चलना,
फूलो की बेला में काँटों को पाते।

डॉ किरण बाला

यादों के काफिले 4

"यादों के काफिले"

गुनगुना रहे हे हम,
यादों के काफिले।

मन में उमंग भर गयी,
इस तरह कुछ सोच कर।

जब हम भी,
कुछ, कभी कुछ थे
बस उन्ही लम्हों को, याद कर।

वेह उड़ती हुयी हवायं थी,
बिजली की तरहे बीत गयी।

मन में था विश्वास कुछ,
जीवन में आस कुछ,
अब तो कुछ भी ना रहा।
केवल हे यादे कुछ।

जीवन कुछ गुजर गया,
और कुछ जाएगा अब,
बहुत कुछ ना कर सके,
अधूरा रहा वह स्वप्न तब।

आज भी प्यास हे,
रौशनी की आस हे,
दिल में किरण आशा की,
और कल पर विश्वास हे।

डॉ किरण बाला

जीवन के पल 3

"जीवन के पल"

कुछ पल खुशी के
इंसान के पास।

आगे और पीछे
यादों की आस।

पल -पल वह सोचे
आगे की बातें।

आशा निराशा
किताबी हिसाब।

जब भी मिला गम,
हँसते रहे।

जल्दी -जल्दी हम चलते रहे
जीवन छोटी सी चादर सा हे
खीचो उधर तो, इधर फिर न हे।

कितना भी चाहो, बढाना इसे,
पल -पल रिस कर , पाना इसे
कुछ ही लम्हों में , गुजर जाएगा
यादो का बंधन सिरक जाएगा।

eise कहानी बनाओ अभी
मिट कर भी जीवन पायो तभी।

डॉ किरण बाला









बच्चो से जुदाई 2

"बच्चो से जुदाई"

नन्ने मुन्ने बड़े हुए जब,
निकले घर से पड़ने।

माँ के दिल की धड़कन लगती
धीरे -धीरे बड़ने।

दूर किया ना कभी था जिनको
उनकी याद सताती।

ठहर - ठहर कर अब आँखों से
अश्रू धार बह जाती।

कितना भी समझाओ मन को
बात समझ ना आती।

करने को कुछ मन ना करता
भूख प्यास मिट जाती।

लेकिन अब हम सीख रहे हे
जीवन की सच्चाई
पंख लगेगे जब बच्चो को
होगी दूर विदाई।

डॉ किरण बाला

प्रभु से दो बातें 1

'प्रभु से दो बातें

मेरे प्रभु तू मुझको दिखा
सीधा -सीधा रास्ता।

चलती चलू उस पर में अब
देती हूँ तेरा वास्ता।

जीवन के इस पहर में हूँ
जहाँ समय कम नही
मन को लगा , अपनी तरफ़
इस दुनिया में दम नही।

हंस कर चलो , हर तरफ़
खुशी मेरे मन में हो
हर दम करू याद तुझे
जीवन के पल कम ना हो।

बुद्धी नही, शक्ति नही
करने को कोई , भक्ति नही
मेरा सहारा, तू ही हे
अब इस जीवन में गम नही।

डॉ किरण बाला

बुधवार, 22 जुलाई 2009

जीवन के पड़ाव 8

"जीवन के पड़ाव"

कभी छोटे थे हम
हँसते रोते थे हम
दुनिया-दारी की कुछ भी ख़बर ना थी।

जीवन चलता रहा
वक्त ढलता रहा
जिम्मेदारी हमारी बड़ती गयी।

जब से आए यहाँ
कुछ -कुछ जाना समां
धीरे -धीरे उमरिया बड़ती गयी।

दूर कितने चले
और कब तक यहाँ
इसका कुछ भी तो हमको पता नही।

कल सुनते थे
आज सुनाते हे हम
परसों कोई ना सुनने वाला होगा
खुशिया ज़रा -ज़रा जाती रही
आख़िर ना कोई, रोने वाला होगा।

चंद शब्दों को
चंद लम्हों को
बस दिल की किताब में बंद किया
कब भी जाना हो
दिल बेगाना हो
अब तो, उसका बस, हिसाब किया ।

डॉ किरण बाला

जीवन बेला 10

"जीवन बेला"

हवा के झोंके से,
हलकी सी खुशबू,
कब और कहाँ आयी।

यू ही लबो पर,
मद्धम सी हरकत,
मन में खुशी लाई।

जीवन का हर पल
हर घड़ी
गुजरती ही जा रही।

कब आकर
कब जाना
कुछ भी, ख़बर नही।

यही की रज में बन कर
यहाँ ही पनपते हे हम
अपनी कला, अदा कर
पल -पल सरकते हे हम।

डॉ किरण बाला

प्रियतम से शिकायत 15

"प्रियतम से शिकायत

शायद समझो कभी भी ना तुम
होती हे,
कैसी तकलीफ।

प्यार के बदले,
दे देते हो
विष से लगते, वाक्य अनेक।

यू तो कोई,
जान ना सकता
मीत तुम्हारे, मन में क्या.
क्या सोचा हे, आज तुम्ही ने,
आने वाले कल में क्या।

इंतज़ार रहता हे मुझको
कब ये वक्त बदल जायगा,
जीत प्यार की उस दिन होगी,
और समय ठहर जाएगा ।

डॉ किरण बाला

समय 26

'समय'

समय का चक्र गोल हे
यह तो बहुत अनमोल हे
ना व्यर्थ तुम इसे करो
यह हर किसी का 'पोल' हे।

जहाँ खड़े हो देख कर
सभी तरफ़ समेत कर
कभी ना भूलना, ये बात,
यह हर 'समय' का खेल हे।

बहुत से पोश्दार थे,
कभी वोह रोबदार थे,
चला जो चक्र वक्त का,
खड़े पीछे कतार से।

डॉ किरण बाला

जीवन की किश्ती 63

'जीवन की किश्ती'

हम रहे किश्ती में बेठे देखते
दुसरे फूलो को आकर ले गए।

उलझनों में उलझ कर हम रह गए
सोचते थे, कुछ, कभी कुछ कह गए।

बंद ना होगा कभी यह सिलसिला
आँसुओ को रोकना मुश्किल हुआ।

हे तमाशा हो रहा, हर और अब
आज हम, कल के लिए, क्यो खो गए।

वक्त कुछ करने को, अब भी, पास हे
रौशनी की भी, अभी कुछ आस हे
हौसले को छोड़ मत, आज तू
कामयाबी अब तुम्हारे साथ हे।

डॉ किरण बाला

परदेस से लौटे भारतीय 61

"परदेस से लौटे भारतीय"

परदेस में थे हम,
परदेसी कहाते.
देश में भी आकर
दुसरे हो जाते।

घरोंदा बनने को
हम निकल पड़े थे
खो दिया बहुत कुछ
आज सोचते हे।

प्यास ना बुझी थी
रौशनी नही थी
जीवन के भंवर में
हम खो जाते।

यह कभी ना सोचा
वक्त बीतता हे
जो गुजर गया हे
वोह कभी ना पाते।

डॉ किरण बाला

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

चाहत और ख्वाब 67

'चाहत और ख्वाब'

हमने जो भी चाहा,
वोह बहुत दूर हुआ
कही खवाबो में भी उसे पा ना सके।

यू तो चाह कर भी,
खुशी ना मिली
जो मिला नही उसको भूला ना सके।

पल में पाया ख़ुद को
नीचे गिरा हुआ
भवर में खो गए
पार जा ना सके।

इतनी रंजिशो का साथ मिला
आज हमें
जब गिरे तो ख़ुद को उठा ना सके।

डॉ किरण बाला

उड़ते पंछी 69

'उड़ते पंछी'

देख -देख कर उड़ते पंछी
ऊपर जाने को मन होता।

दूर सितारों में चंदा को
अब तो पाने को मन होता।

इस जीवन के , मध्ये में आकर
पथ को बदला सा पाया।

चलती दुनिया , बदली राहे
थोड़ा सा मन घबराया।

देख उड़ान तब पंछी की
नीरसता ने छोड़ा साथ।

मिला होंसला कुछ तब हमको
बंधी कुछ करने की आस।

डॉ किरण बाला

मेरी पडोसन 71

'मेरी पडोसन'

मेरी पडोसन
हे इक घर -वाली
रहती हे
सुबह -शाम खाली।

रखती हे वोह ख़बर
की मेरे घर कौन -कौन आया।

रखती हे वोह नज़र
की किसने बजाया
मेरे घर का ब्ज्ढ़।

उसे यह भी ख्याल रहता
की मेने किस -किस को दिया न्योता।

छुप -छुप कर परदे के पीछे से
वोह देखती हे घर में मेरे।

और कह देती हे, जब भी मिले
रहती कहाँ हो छुपी तुम,
घर की दीवारों के पीछे।

डॉ किरण बाला

बिजली संकट 72

'बिजली संकट'

बजे सुबह के दस,
बिजली हो गयी कट।

एसी ने, शुरू किया आराम
फ्रीज ने भी, बंद किया काम।

अब तो टीवी की फोटो तो हुई फट
और इन्टरनेट की लाइन गयी कट।

जब पसीने ने किया बुरा हाल
इन्वेर्टर के पंखे ने किया कमाल।

गाली देते हे , रोज बिजली वालो को हम
और बेट जाते हे चुप -चाप इंतज़ार में
की कब वोह दिन आयेगा
जब बिना बिजली के घर में
एसी , फ्रीज और कंप्यूटर चल पायेगा।

डॉ किरण बाला

शनिवार, 18 जुलाई 2009

यह दुनिया 37

'यह दुनिया'

यह दुनिया
बेरहम दिल हे
आज उसकी कल इसकी
ना इसकी कोई मंजिल हे।

बड़ी पेचीदा सी , ये एक कहानी
ना तेरी
ना मेरी
बस बीतने वाली हे जिंदगानी।

जिसके तन में he ताकत
उसने जीता हे इसको
बाकी सब की तो
हार जाने की हे इक निशानी।

डॉ किरण बाला

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

तन और मन 20

'तन और मन'

तन की सुन्दरता मनमोहक
मन तो वोही पुराना हे।

मैला सा, धुंधला सा प्रतिबिम्ब
वोह तो हुआ बेगाना हे।

माट्टी में, जो मिल जाना हे
उसको हम सहलाते हे
कब तक रहना , इस नगरी में
भूल -भूल हम जाते हे .
डॉ किरण बाला

अकेले हम 23

'अकेले हम'

शोरोगुल बहुत हे
हम हे अकेले
थिरकते लबो पर
दुनिया के मेले।

रिश्ता हुआ मन
कुछ सोचता हे
आए अकेले
जाना अकेले।

कोशिश में रहते
मिल कर रहे hum
त्न्हायेओ को हुस कर सहे हम
कोई ना समझे
दिल की कहानी
सब गा रहे हे
अपनी जुबानी
डॉ किरण बाला

दिल की बात 24

दिल की बात
इतने बरेह जहाँ में
थेःकिउ खर्रेह अकेले
कोई ना साथ अपने
कैसे हे जग के मेलः
यूं तो मिला हे सब कुछ
लेकिन
सूकून कम हे
छोटी सी जिंदगी में
मन में हज़ार गम हे
डॉ किरण बाला

छोटा जीवन 73

'छोटा जीवन'

छोटे से जीवन में
इच्छा अनेक।
कुछ तो मिल जाता
रह जाता कुछ लेख।

कल करने को
अभी कुछ बाकी हे।
इसी आशा में गुम
होता हर एक।

डॉ किरण बाला

वह शाम 60

"वह शाम"

सुबह ढली तो शाम थी,
पता नही क्या दाम थी।

बहुत तलक थी सोचते,
मिली वोही बेनाम थी।

गुजर गयी पता नही,
किसी हलक बेकाम थी।

सरक- सरक के चल दिए,
मिली कभी वः शाम थी।

डॉ किरण बाला

बच्चो को क्या दे 19

"बच्चो को क्या दे"

देना चाहो जो तुम उनको
तो बस देना अच्छी सीख.

धन दौलत तो अच्छे लगते
लेकिन रहते सदा ना मीत।

सीखे बच्चे मेहनत करना,
यु ना समय गवाए वो।

चका -चौंध दुनिया में रह कर,
कभी भी ना अलसाये वो।

सदा रहेगी साथ उनी के
विद्या धन की यह पूँजी।

चुरा सके ना कोई आज तक
जब तक रहता हे जीवन।

डॉ किरण बाला

पति से विवाद 25

पति से विवाद 25

कुछ तुमने कही ,
कुछ हमने कही
बातो में बात , बिगर्र सी गई

यूं एसा लगने लगता हे
श्ब्दोह की ल्र्री कुछ उलजः गई

इतना तो मधुर संवाद न था
जो दूरी का सामान बने

सुंदर इस छोटी बगिया में
छुट- पुट भी काउ अंगार बने

जीवन के पथ पर चलना हे
तोह संग- संग ही साथ रहे

जो बीत गया , वो भूल चुके
आगे की बातें याद रहे

डॉ किरण बाला

हँसते-हँसते रो दिए 76

'हँसते-हँसते रो दिए'

हँसते हँसते, हम अचानक रो दिए,
हम तो खुश थे, हर तारे से
रास्ते भी खो दिए।

चलते चलते रुक गया कुछ थम गया सब
सोचते ही रह गए
की, क्या हुआ अब
यह नही की, हम कही कमजोर थे
फिर भी हम, उस नज़र से और थे।

डॉ किरण बाला

दर्द की दवा 11

दर्द की दवा

मन जब उदास
आँखों में आस,
तो कविता ही बस सहारा हे
बंधे फिक्रो को उगलने को
बस यही फिजारा हे।

सुंदर सपनो की गाथा
सभी सुनेगे।

जब भी, मन हो बेचैन
तो अकेले ही रहेगे।

खुशिया तो बांटो सभी के साथ
गम में तो स्याही, और किताब

इस तेज, दर्द की, दवा यही हे
बिखरते कणों की, अदा यही हे ।

डॉ किरण बाला

मंजिल 9

मंजिल 9
समंदर में जाने को नौका नही
मंजिल को पाने का मौका नही
निराशा में पुष्पों की बेला नही
मुकदर से कोई खेला नही
बहुत कुछ न मिलता , तो क्या हुआ
अच्छा हुआ जो भी हुआ
बेठे हुए हम सोचते
पीछे हट जाने का सोचा नही
डॉ किरण बाला

बच्चो की माँ 13

बच्चो की माँ

बहुत बार यह देखा करते
शिशुओ में उल्जेह हे हम
अब आए अब बर्रे हुए
और तब वे गयेः छोर्र कर सब

जीवन में कुछ करना हे तो
अपने लिए समय रखो
नही तो आखिरी पल में पहुँच कर
बहुत खेद होगा तुम को

यह समय तो तुम्हारा भी हे
अपने तन मन से पूछो
केवल काठ पुतली न बन कर
कुछ अच्छा तुम भी कर लो

आज पति का , कल बच्चो का
परसों कभी न आयेगा
जीवन जो तुमने पाया था
वः यो ही खो जाएगा

फिर बेठी आकाश में तुम तो
बच्चो को सेहलायोगी
पता नही वे याद भी करते
शायद तुम पछताओगी
डॉ किरण बाला

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

"जीवन का सफर" ३९ "काफिले उठते रहे" 41

"जीवन का सफर"

कभी होंठों पर कोई बात ,
दिल से पहले आ जाती.
बिना दस्तक किए ,
रौशनी की झलक आ जाती ।

यूँ ही विचरने लगे ,
महकते फूलों में हम .
हलकी सी खुशबू ,
वहां भी आ जाती ।

लंबे सफर में आज ,
हमराही मिला .
कहीं से पतझड़ की लहर ,
उधर भी आ जाती ।

दिल तो कहता है ,
खुश , खुशहाल रहो .
फिर भी धीरे से ,
कांटो की चुभन आ जाती ।

"काफिले उठते रहे"

काफिले उठते रहे ,
कभी सच , कभी सपना था ।

मन उदास हुआ कुछ पल ,
फिर तो , पता नहीं , कौन अपना था ।

ख़बर तो घड़ी की भी नहीं ,
मगर कतार , आशा की लगी ।

उस 'कल ', जब होंगे न हम ,
इस बात की न खैर करी ।

डॉ किरण बाला

रविवार, 12 जुलाई 2009

Inner Voice

Bin maangeh Shikshaa naa dena
khush rahogeh intnaa tum
koon kareh kuch karneh do
Baat kaheh bhi baarneh doo
Akhir jeet tumari hogi
Gar rahoogeh upneh saath!

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

बारिश

बहुत दिनों के बाद
बरसी हे बरसात

खुश हुआ मन
खिल उठा तन
गर्मी से मिली निजात!

डॉ किरण

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

आज का ख्याल!

सुबह - सुबह जब उठ कर देखा
गरम हवा थी चलती.
मन करता था
में उर्र जाऊ
जहाँ नही हो गर्मी
डॉ किरण