गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

पतझर

इस बाग़ में हे लग रहा

मुरझा गए हे फूल सब

खुशबु जो महक थी कभी

उकता गए हे आज सब।

दीवानगी होती कभी थी

आज सब खामोश हे।

बीते पलो के साथ भी

इंतजार आज तक।

डॉ किरण बाला

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