'कुछ न मिलेगा '
बिना स्वार्थ के,
कोई न अपना,
आज जगत में।
कितना भी चाहो,
तुम सोचो,
सोचते जायो,
कुछ न मिलेगा।
मतलब की इस दुनिया में,
तुम व्यर्थ के माली
सींचते जायो जग की बगीया,
कुछ न मिलेगा।
महक रहे फूलो की शोभा,
लगती प्यारी ,
देखते जायो,
कुछ न मिलेगा।
डॉ किरण बाला
मंगलवार, 25 अगस्त 2009
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