'निर्झर झरना और हम '
निर्झर झरने की तरेह ,हम भी,
आवाज़ की दुनिया में रहते।
शोरोगुल रहता आस- पास,
दुनिया से बेखबर हम रहते।
जल का जो उजलापन देखा,
तन ,मन , धन ,उसका कर ही दिया।
आते जाते पाथेको को
सुन्दरता का उपहार दिया
आभास हुआ तब एइसा कुछ
ऊपर जाने वाला गिरता हे
नीचे तो सब को आना हे
यह आवागमन पुराना हे।
पानी की तेजी देख- देख
मन करता हे हम भी भागे
छोडे अब धीरे चलना हम
आगे जाने की सोचे।
डॉ किरण बाला
बुधवार, 26 अगस्त 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें