किसी समय हम, कुंठित मन से ।
पीड़ा ,किसी को, दे देते ।
लेकिन फिर जब, क्रोध शांत हुआ । । ।
तो pachhta कर रो देदेते।
आत्म ग्लानी बहुत बुरी हे।
मुड़कर देख रहे हे हम
याद आ रही, un baatho kee,
जो बीती थी पिछले पल।
डॉ किरण बाला
I have written poems from published hindi poetry book titled 'dil ke batein'. I am a pediatrician and a published writer and poet.Presenting my views to others is my hobby.
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