शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

आत्म ग्लानी 66

'आत्म ग्लानी '



किसी समय हम, कुंठित मन से ।

पीड़ा ,किसी को, दे देते ।

लेकिन फिर जब, क्रोध शांत हुआ । । ।

तो pachhta कर रो देदेते।



आत्म ग्लानी बहुत बुरी हे।

मुड़कर देख रहे हे हम

याद आ रही, un baatho kee,

जो बीती थी पिछले पल।

डॉ किरण बाला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें