मंगलवार, 4 अगस्त 2009

याद जब आई

याद जब आई

जीवन की गहरैओ में
खो गया वो प्यार
जो कभी हमने किया था .

व्यर्थ की उलझनों में
बस गया ऊलास
जो कही खो गया था

उमंग के वो क्षण
झंजनाहत के सहारे
उलाहना दे रहे हे हमें

याद करते हे वो बात्तें
जो भूल चुकी हे

होठो की नरमी
सांसो की गर्मी
जब दुरिया लांग कर एक हो जाती हे
तो छंट जाती हे मायूसी की परझाई

चंद फिक्रो को नजम बना कर
लाँघ सकते हे दूरिया
सब कुछ भूला कर

तभी सरसरा कुछ रंग लायेगा
बीता हुआ कल फिर लौट आयेगा

किरण बाला

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