'तो क्या समझे'
बीच बेठे भीर में हे रो रहे
बात कर न सके
तो क्या समझे।
असीम दुनिया के दरिया में खो रहे
उभर न सके
तो क्या समझे।
जब कभी दर्दे दिल की बात
अपनों से न कह सके
तो क्या समझे
डॉ किरण बाला
शनिवार, 29 अगस्त 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें