'जीवन की सच्चाई'
वक्त वक्त की बात हे
इक दिन सब का होय
यह तो चक्र अजीब हे
चलता एक ही और
चाहे कुछ भी सोच लो
बदले कभी न पोर
जब तक मीठा स्वाद हे
कड़वाहट हे दूर
सपनो में उलझे रहे
भूले पीड शरीर
हम लाये कुछ साथ न
न जाना कुछ साथ
संचित जो भी हे किया
उसका न संताप
करनी भरनी हे यहाँ
ध्यान करो जो काम
अच्छा बुरा जो जांचना
लेके प्रभु का नाम
डॉ किरण बाला
शुक्रवार, 28 अगस्त 2009
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