बुडापा आ गया
बुडापा चीज़ हे ऐसी
जिसे कोई भी न चाहे
मगर वो आ ही जाता हे।
वो मेहमान हे यहाँ एइसा
बुलाय बिन जो आ जाता
हमें बेठे बिठाये वेह
बहुत आश्रित बना जाता।
जिस तन पर गर्व था हमको
सजाया जिस को करते थे
बहुत सुंदर सलोने वस्त्रे
और्राया उसको करते थे
मगर शिकवा गिला कैसा
यहाँ तो सब खिलाड़ी हे
जो जीता कल तक करते थे
उन्हों ने बाजी हारी हे।
कही बेटा हो या बेटी
या फिर हो बहिन या भाई
सभी ने फेर ली आंखे
अब तो देते रहो दुहाई।
जीवन का एइसा अंत
आखिर सब पर आना हे
यह दुनिया हे नही अपनी
यहाँ से कल तो जाना हे.
डॉ किरण बाला
शनिवार, 29 अगस्त 2009
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