'बूढापन इंसान का आखिरी पड़ाव '
शुरू कभी कही से हो ,
आखिरी पड़ाव तो आना हे ।
यह जीवन हमने पाया जो ,
उस को तो इक दिन जाना हे ।
बचपन से जवानी के दिन तो
जल्दी -जल्दी बीत चले
यु आँख खुली तो क्या देखा
यह जीवन तो बेगाना हे ।
आखों में धुंधला पन छाया
काया की चमक भी दूर गयी।
दातों ने बहुत न संग दिया,
रातो की नींद भी गोल हुई ।
कभी यहाँ दर्द, कभी वहां दर्द
कभी सर दर्द का बहाना हे।
अब तो जीवन यु काट रहे,
कुछ दिन में यहाँ से जाना हे।
डॉ किरण बाला
मंगलवार, 25 अगस्त 2009
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