'बदले पलों की इंतज़ार'
इंतज़ार उस पल का करते,
जब सब बदला -बदला हो।
कोई सुहाने सपनो का जब,
मिलने का अंदेशा हो।
अविचल मन के सागर में यू
स्वर के कंकर ध्वनि करे।
अब तक जो समतल रहता था,
उस को भी हम पर करे।
क्या सोचा हे तुमने आज,
निकल सकएगे कब तक पार।
सोची समझी इस दुनिया में,
मिलते हे हम सब को यार।
बदली -बदली raaho पर ,
hum kuch to samaj nahi paye.
duniya ke har insaan ko,
khush karne ko na aye.
dr kiran bala
गुरुवार, 27 अगस्त 2009
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