'मिलते नही किनारे'
आग बनी सावन की बरखा
फूल बने अंगारे
गलिया सूनी कुञ्ज उदास
चुप -चुप हे दीवारे ।
नागिन बन गयी
रात सुहानी
विश से बुझ गए तारे
दर्द भरी इस दुनिया में
मिलते नही किनारे ।
डॉ किरण बाला
रविवार, 30 अगस्त 2009
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