'हम कहाँ और दिल कहाँ'
बहुत छोटी बात थी
न सुबह, न रात थी।
दर्द की भीनी चुभन
बस हमारे पास थी।
रोशनी को दूर देखा
धुंद का था कुछ चलन।
कुछ समझ न आ रहा था
हम कहाँ और दिल कहाँ।
डॉ किरण बाला
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
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