'जो मिला एहसान तब '
आज तक पढ़ते रहे
जो पुस्तकों को कर सलाम
सोचते न हे कभी भी
मिल सका क्यों यह मुकाम।
दूसरो ने आज तक
दी हमें कुछ रोशनी
क्यो न हम अब यु चुकाए
जो मिला एहसान तब।
डॉ किरण बाला
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
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