चुप चाप
रात के अंधेरे में
मद्धम रौशनी की लो
धड़कते दिल को
क्या सिला देती हे।
कुछ अनकहे सवालो को
मासूम सी हरकतों से
दिल की गह्रैओ को छू कर
पन्हा देती हे।
हम चुप चाप
चल देते हे
मुकाम की और
भीगी पलकों के सहारे।
डॉ किरण बाला
सोमवार, 7 सितंबर 2009
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