बुधवार, 30 सितंबर 2009

जीता रहे जो भी कही

सुस्ता रहे शमशान में

धुआ उठे बेजान से

हे मंजिले सबकी वही

जीता रहे जो भी कही।

डॉ किरण बाला

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