रविवार, 27 सितंबर 2009

ऐसे ही बीतेगी यह जिंदगानी

मन में तरंगो का महल बनाना

तरंगो का यु ही बिखर, बिखर जाना

रह जो गया वो , मन तो नही हे

यही सोचने का द्दंग तो नही हे।

दिल चाहता हे दिल को निकाले

उसे अपने सन्मुख फिजा से बिठा ले

करले कुछ बातें बीती पुरानी

ऐसे ही बीतेगी यह जिंदगानी

डॉ किरण बाला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें