'दूरियों से दूर क्यो'
गिर रहे हे फूल सब
अब कही से टूट कर
देख लेते हे सभी को
आंसुओ को लूट कर।
कुछ नही हे पास तो भी
हे कही 'गरूर' तो
फान्सलो को पार करके
दूरीयो से दूर क्यो .
डॉ किरण बाला
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें