मंगलवार, 21 जुलाई 2009

चाहत और ख्वाब 67

'चाहत और ख्वाब'

हमने जो भी चाहा,
वोह बहुत दूर हुआ
कही खवाबो में भी उसे पा ना सके।

यू तो चाह कर भी,
खुशी ना मिली
जो मिला नही उसको भूला ना सके।

पल में पाया ख़ुद को
नीचे गिरा हुआ
भवर में खो गए
पार जा ना सके।

इतनी रंजिशो का साथ मिला
आज हमें
जब गिरे तो ख़ुद को उठा ना सके।

डॉ किरण बाला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें