'चाहत और ख्वाब'
हमने जो भी चाहा,
वोह बहुत दूर हुआ
कही खवाबो में भी उसे पा ना सके।
यू तो चाह कर भी,
खुशी ना मिली
जो मिला नही उसको भूला ना सके।
पल में पाया ख़ुद को
नीचे गिरा हुआ
भवर में खो गए
पार जा ना सके।
इतनी रंजिशो का साथ मिला
आज हमें
जब गिरे तो ख़ुद को उठा ना सके।
डॉ किरण बाला
मंगलवार, 21 जुलाई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें