"खुशी"
खुशी मन में हे,
मन के बाहर नही।
यहाँ देखो,
वहाँ देखो,
यहाँ खोजो,
वहाँ ढूँढो,
वः तो हे,
जहाँ चाह की दीवार नही।
इच्छा और खुशी दो बातें हे,
जिनका ना कभी भी मेल हुआ,
इक पा लो तो मन भरता न,
फिर पाने का झामैल हुआ।
इक मंजिल पार करो तब तक,
दूसरी तैयार खड़ी ही हे।
उसको भी, पाने का तुमने,
जब निश्चये ही, हर रोज किया,
तो फिर क्या हुआ,
कुछ भी ना हुआ,
आशाओं का तांता हे बंधा।
यह पाने पर,
वो पा जाना,
यह सोचना,
और घबरा जाना,
इतने से काम नही चलता,
इस जीवन में यह ना रास्ता।
यह जीवन एक तराना हे,
यहाँ फिर से आना जाना हे।
डॉ किरण बाला
गुरुवार, 23 जुलाई 2009
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