"जीवन बेला"
हवा के झोंके से,
हलकी सी खुशबू,
कब और कहाँ आयी।
यू ही लबो पर,
मद्धम सी हरकत,
मन में खुशी लाई।
जीवन का हर पल
हर घड़ी
गुजरती ही जा रही।
कब आकर
कब जाना
कुछ भी, ख़बर नही।
यही की रज में बन कर
यहाँ ही पनपते हे हम
अपनी कला, अदा कर
पल -पल सरकते हे हम।
डॉ किरण बाला
बुधवार, 22 जुलाई 2009
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