शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

वह शाम 60

"वह शाम"

सुबह ढली तो शाम थी,
पता नही क्या दाम थी।

बहुत तलक थी सोचते,
मिली वोही बेनाम थी।

गुजर गयी पता नही,
किसी हलक बेकाम थी।

सरक- सरक के चल दिए,
मिली कभी वः शाम थी।

डॉ किरण बाला

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