"वह शाम"
सुबह ढली तो शाम थी,
पता नही क्या दाम थी।
बहुत तलक थी सोचते,
मिली वोही बेनाम थी।
गुजर गयी पता नही,
किसी हलक बेकाम थी।
सरक- सरक के चल दिए,
मिली कभी वः शाम थी।
डॉ किरण बाला
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
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