गुरुवार, 23 जुलाई 2009

आख़िरी क्षण 7

"आख़िरी क्षण"

व्यर्थ ना कर आँसुओ में,
वक्त की अनमोल घडिया।

बीत जानी हे क्षणों में,
साथ खिलती हे जो कलियाँ।

हर तरफ़ की बेरुखी,
एहसान एय्सा कर गयी,
मुख्त्लीफ़ हम को बना कर,
प्रेरणा से भर गयी।

आग में जल कर ही कोयला,
रौशनी फेलायेगा।

हर तरफ़ लपटों में धुल कर,
ख़ाक ही बन जाएगा।

यह हमारा,
ये तुम्हारा,
कोई भी अपना नही।

जो हे पाया,
नेक बन कर,
बस वोही संग जाएगा।

मृत्यु का ना समय कोई,
कब बुलावा आ गया।

ईश को तू याद कर ले,
ना तो फिर पछतायेगा।

डॉ किरण बाला

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