बच्चो की माँ
बहुत बार यह देखा करते
शिशुओ में उल्जेह हे हम
अब आए अब बर्रे हुए
और तब वे गयेः छोर्र कर सब
जीवन में कुछ करना हे तो
अपने लिए समय रखो
नही तो आखिरी पल में पहुँच कर
बहुत खेद होगा तुम को
यह समय तो तुम्हारा भी हे
अपने तन मन से पूछो
केवल काठ पुतली न बन कर
कुछ अच्छा तुम भी कर लो
आज पति का , कल बच्चो का
परसों कभी न आयेगा
जीवन जो तुमने पाया था
वः यो ही खो जाएगा
फिर बेठी आकाश में तुम तो
बच्चो को सेहलायोगी
पता नही वे याद भी करते
शायद तुम पछताओगी
डॉ किरण बाला
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
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