"समय रुपी अष्व पर सवार"
हम सवार अष्व पर
हवा के वेग सा चले।
कहाँ चला किधर मुड़ा
यह बात कुछ भी ना पता।
अंधेरे से हे रास्ते
तेज -तेज मुड रहे।
मंजिलो को ढूंढते
किधर मिले , कहा मिले।
डॉ किरण बाला
सोमवार, 27 जुलाई 2009
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