सोमवार, 27 जुलाई 2009

समय रुपी अष्व पर सवार 59

"समय रुपी अष्व पर सवार"

हम सवार अष्व पर
हवा के वेग सा चले।

कहाँ चला किधर मुड़ा
यह बात कुछ भी ना पता।

अंधेरे से हे रास्ते
तेज -तेज मुड रहे।

मंजिलो को ढूंढते
किधर मिले , कहा मिले।

डॉ किरण बाला

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