शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

मंजिल 9

मंजिल 9
समंदर में जाने को नौका नही
मंजिल को पाने का मौका नही
निराशा में पुष्पों की बेला नही
मुकदर से कोई खेला नही
बहुत कुछ न मिलता , तो क्या हुआ
अच्छा हुआ जो भी हुआ
बेठे हुए हम सोचते
पीछे हट जाने का सोचा नही
डॉ किरण बाला

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