गुरुवार, 23 जुलाई 2009

यादों के काफिले 4

"यादों के काफिले"

गुनगुना रहे हे हम,
यादों के काफिले।

मन में उमंग भर गयी,
इस तरह कुछ सोच कर।

जब हम भी,
कुछ, कभी कुछ थे
बस उन्ही लम्हों को, याद कर।

वेह उड़ती हुयी हवायं थी,
बिजली की तरहे बीत गयी।

मन में था विश्वास कुछ,
जीवन में आस कुछ,
अब तो कुछ भी ना रहा।
केवल हे यादे कुछ।

जीवन कुछ गुजर गया,
और कुछ जाएगा अब,
बहुत कुछ ना कर सके,
अधूरा रहा वह स्वप्न तब।

आज भी प्यास हे,
रौशनी की आस हे,
दिल में किरण आशा की,
और कल पर विश्वास हे।

डॉ किरण बाला

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