"प्रियतम से शिकायत
शायद समझो कभी भी ना तुम
होती हे,
कैसी तकलीफ।
प्यार के बदले,
दे देते हो
विष से लगते, वाक्य अनेक।
यू तो कोई,
जान ना सकता
मीत तुम्हारे, मन में क्या.
क्या सोचा हे, आज तुम्ही ने,
आने वाले कल में क्या।
इंतज़ार रहता हे मुझको
कब ये वक्त बदल जायगा,
जीत प्यार की उस दिन होगी,
और समय ठहर जाएगा ।
डॉ किरण बाला
बुधवार, 22 जुलाई 2009
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