दर्द की दवा
मन जब उदास
आँखों में आस,
तो कविता ही बस सहारा हे
बंधे फिक्रो को उगलने को
बस यही फिजारा हे।
सुंदर सपनो की गाथा
सभी सुनेगे।
जब भी, मन हो बेचैन
तो अकेले ही रहेगे।
खुशिया तो बांटो सभी के साथ
गम में तो स्याही, और किताब
इस तेज, दर्द की, दवा यही हे
बिखरते कणों की, अदा यही हे ।
डॉ किरण बाला
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
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