शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

दर्द की दवा 11

दर्द की दवा

मन जब उदास
आँखों में आस,
तो कविता ही बस सहारा हे
बंधे फिक्रो को उगलने को
बस यही फिजारा हे।

सुंदर सपनो की गाथा
सभी सुनेगे।

जब भी, मन हो बेचैन
तो अकेले ही रहेगे।

खुशिया तो बांटो सभी के साथ
गम में तो स्याही, और किताब

इस तेज, दर्द की, दवा यही हे
बिखरते कणों की, अदा यही हे ।

डॉ किरण बाला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें