मंगलवार, 14 जुलाई 2009

"जीवन का सफर" ३९ "काफिले उठते रहे" 41

"जीवन का सफर"

कभी होंठों पर कोई बात ,
दिल से पहले आ जाती.
बिना दस्तक किए ,
रौशनी की झलक आ जाती ।

यूँ ही विचरने लगे ,
महकते फूलों में हम .
हलकी सी खुशबू ,
वहां भी आ जाती ।

लंबे सफर में आज ,
हमराही मिला .
कहीं से पतझड़ की लहर ,
उधर भी आ जाती ।

दिल तो कहता है ,
खुश , खुशहाल रहो .
फिर भी धीरे से ,
कांटो की चुभन आ जाती ।

"काफिले उठते रहे"

काफिले उठते रहे ,
कभी सच , कभी सपना था ।

मन उदास हुआ कुछ पल ,
फिर तो , पता नहीं , कौन अपना था ।

ख़बर तो घड़ी की भी नहीं ,
मगर कतार , आशा की लगी ।

उस 'कल ', जब होंगे न हम ,
इस बात की न खैर करी ।

डॉ किरण बाला

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