"जीवन का सफर"
कभी होंठों पर कोई बात ,
दिल से पहले आ जाती.
बिना दस्तक किए ,
रौशनी की झलक आ जाती ।
यूँ ही विचरने लगे ,
महकते फूलों में हम .
हलकी सी खुशबू ,
वहां भी आ जाती ।
लंबे सफर में आज ,
हमराही मिला .
कहीं से पतझड़ की लहर ,
उधर भी आ जाती ।
दिल तो कहता है ,
खुश , खुशहाल रहो .
फिर भी धीरे से ,
कांटो की चुभन आ जाती ।
"काफिले उठते रहे"
काफिले उठते रहे ,
कभी सच , कभी सपना था ।
मन उदास हुआ कुछ पल ,
फिर तो , पता नहीं , कौन अपना था ।
ख़बर तो घड़ी की भी नहीं ,
मगर कतार , आशा की लगी ।
उस 'कल ', जब होंगे न हम ,
इस बात की न खैर करी ।
डॉ किरण बाला
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें