"बदली राहे"
एक राह पर चलते -चलते,
मोड़ सामने आया।
हमने कुछ घबरा कर,
पग पीछे सरकाया।
पता नही थी
यह लाचारी
या मजबूरी उस दिन
सोच -सोच कर , इसी बात को
मन अब कुछ मुरझाया।
डॉ किरण बाला
रविवार, 26 जुलाई 2009
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I have written poems from published hindi poetry book titled 'dil ke batein'. I am a pediatrician and a published writer and poet.Presenting my views to others is my hobby.
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