"संघर्ष"
पेद्य्शे वक्त से इंसान
ऐसे जूझता रहता
कभी यहाँ , कभी वहाँ , खुशी को ढूँढता रहता
जब मिलता नही मुकाम
तो होता निराश।
छोड़ देता, कुछ करने की आस
भूल जाता कुछ क्षणों के लिए
की उसको आगे जाना हे
सब कुछ भूल कर , जीवन में कुछ पाना हे
बड़ी पेचीदा हे दुनिया
जिसमे हमको हे रहना
यहाँ आसान ना कुछ भी
हमें सब कुछ हे सहना
गमो को अमृतसम जानना होगा
आए जो सामने
उसे पहचानना होगा।
डॉ किरण बाला
शनिवार, 25 जुलाई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें