"ख़त का इंतज़ार"
जिस दिन ना कोई ख़त,
हमारे नाम आया।
दिल उदास हुआ,
कुछ निराश हुआ,
आस टूटी,
ख्वाबो का सिलसिला,
बे हिसाब आया।
सोचने लगे,
बहुत लोगो की बातें,
आज एक -एक करके
सब का ख्याल आया।
यूँ तो कहने को,
बहुत दोस्त नही,
लेकिन मन पसंदों पर भी
आज प्यार आया।
सुबह से टिकटिकी लगाकर
देख रहे,
दरवाजे की और,
शायद किसी ख़त का जवाब आया।
डॉ किरण बाला
शनिवार, 25 जुलाई 2009
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