रविवार, 26 जुलाई 2009

बेबसी 58

"बेबसी"

बेबस क्यो इतने
हम हे बेचारे।

यू तो हे कहते
सब हे हमारे।

जब वक्त पड़ता
कोई ना अपना।

सारे जहाँ में
खड़े बेसहारे।

मुश्किल बहुत हे
मन को सुझाना
कौन हे अपना
या वोह बेगाना।

इतना समझकर भी
उलझा सा मन हे
एय्से लगे जैसे
जीवन बंधन हे।

डॉ किरण बाला

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